रविवार, 13 दिसंबर 2009

बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर...हमारा बजाज.



बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर...हमारा बजाज....हमारा बजाज...ये महज विज्ञापन नहीं बल्कि नये सपनों,नयी उड़ान की... नयी गाथा थी......थी इसलिए क्योंकि अब हमारा बजाज यानि हमारा स्कूटर हमारा नहीं रह गया है...इसके मालिकों को कार और बड़ी-बड़ी गाड़ियों के जमाने में ये छोटी सी चीज मुनाफे के लिहाज घाटे का सौदा लगने लगी थी...या यूं कहें कि आजके फास्ट ट्रैक युवाओं के लिए ये स्कूटर जिंदगी की तेज रप्तार में ब्रेकर की तरह महसूस होने लगा...जिसका असर इस नन्हीं जान की बिक्री पर पड़ा और अब इसके मालिक इसे बाजार से उठाने का फैसला कर चुके हैं....ना जाने कितने स्कूटर बाजार में आई और गई..लेकिन बजाज,स्कूटर से कहीं ज्यादा था...राम बाबू को शादी में मिला था ये स्कूटर...शादी के बाद अपनी पत्नी को इसी स्कूटर पर बिठाकर पहली बार ससुराल गये थे वो...उन्हें अब भी याद है...किस तरह से शहर पार करते ही एक सड़क के किनारे उन्होंने स्कूटर रोक दी थी...ताकि अपनी संगिनी का चेहरा एक बार दिन के उजाले में देख लिया जाए...अब पत्नी नहीं रही..बेड पर पड़े अंतिम यात्रा की बाट जोह रहे हैं...लेकिन बूढ़े राम बाबू को बरामदे में खड़ी ये स्कूटर उन्हें दिन में कई बार शहर के बाहर उसी जगह ले जाती है...कहानी राम बाबू की अकेले नहीं है...दरअसल इस स्कूटर ने एक नयी पीढ़ी को अपने साथ जवान किया....हर सुख-दुख का साथी रहा है ये स्कूटर....इसने जवानी की मस्तियां झेली...दोस्तों की दूसरी गाड़ियों के साथ रेस लगाया....गांव के चक्कर लगाये...पत्नियों को साथ घुमाया...बेटी की शादी हुई तो सबसे ज्यादा इसी स्कूटर ने भागम-भाग की...बिना किसी हील-हुज्जत के..सारे काम किये...रिश्ते फाइनल करने से लेकर..बैंड-बाजे को ठीक करना...रसोइये के टूटी-फूटी गलियों से लेकर...पूरे शहर को नाच-नाच कर कार्ड बांटा..जब बेटी बिदा हुई तो बिना किसी को आंसू दिखाये..चुप-चाप रोता रहा...बिल्कुल पिता की तरह...घर में खुशियां हो या गम...सबका साथई बना...लेकिन लोग बदल गए...स्कूटर पर चलते-चलते बच्चे बड़े होने लगे...गांव और छोटे शहरों से निकलकर महानगरों में आ गए..अब धूल भरी सड़कों की जगह चमचमाती फ्लाईओवरों ने ले ली थी...मां की लोरी के बदले..डिस्कोथेक के गीत मन में उतरने लगे...चांदनी रात की बजाये अब आसामान में नियोन लाइट चमकने लगे...नयी उम्मीदें...नयी हसरत..नये उड़ान को पंख मिलने लगे...अब इसके नये साथियों को रप्तार की कमी महसूस होने लगी थी...ऐसे में वही बच्चे जो मैट्रिक पास करने के बाद इस बजाज पर बैठकर घर से तीन-चार किलोंमीटर दूर सिगरेट पीने जाया करते थे...अब उन्हें को इसकी जरूरत नहीं रह गयी...इसके पीछे कुछ तो वाजिब वजहे हैं..अब कारण चाहे जो हो लेकिन अब बजाज सड़कों पर नहीं दिखेगा.....लेकिन सड़कों पर ना सही लेकिन इसकी तस्वीर यादों के जरिए दिलों में बनी रहेगी...