शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

"इश्वर तेरे होने पर शक है मुझे"

दफ्तर जाते समय

चौराहे पर एक बूढ़ा हर रोज

तेज भागती सड़कों के किनारे

दिखता है मुझे

चिल्ला कर मांगता है चंद पैसे

जीवन जीने के लिये

‘इश्वर’ तेरे नाम पर

पर दुनिया है कि ठहरती ही नहीं

और तभी मुझे शक होता है,इश्वर

तेरी मौजूदगी पर

पर लोग कहते हैं कि

तू है और

तुझे सब मालूम है

फिर तूने बम फटने से पहले

बताया क्यों नहीं

यदि ये दुनिया तेरी अपनी है,तो

मासूमों के खून से लाल क्यों होने दिया इसे

जब पश्चिम के टैंक,इराक को रौंद रहे थे

तो तूने उस टैंक के पहिये को रोका क्यों नहीं

सुना है तेरे लिये,सब एक है,तो

विदर्भ के किसानों ने खुदकुशी क्यों की

क्यों नहीं उनके फसल को बर्बाद होने से बचाया

अगर सब कुछ तेरे इशारे पर है,तो

बेकारी,गरीबी खत्म क्यों नहीं करता तू

क्यों आम आदमी रोता है उम्र भर

और भ्रष्ट नेताओं को दंड नहीं मिलता

यदि तू इतना बलशाली है,तो

धर्म,जाति को जंजीरों को तोड़ता क्यों नहीं

यदि राम,कृष्ण,गांधी तेरे ही रूप थे

तो आज तू कहां है

क्या किसी आतंकी ने,तूझे भी खत्म कर दिया

या बाजार में टहलते में हुए

तू भी किसी बम के छर्रे का शिकार हो गया

या फिर तू है ही नहीं

सदियों से लोग,यूं ही बेवकूफ बनते आ रहे हैं

छलावे में जीते हुए

अनाम सहारे की उम्मीद लगाए बैठे हैं

तभी तो परीक्षा की घड़ी अब तेरे लिये है

अब तो दिखा अपना करतब

बचा इस मानवता को

मरने ना दे इंसानियत को

वरना कुछ वर्षों बाद

जब हैवान ही बच जायेगें इस धरती पर

तो तेरे होने का भरोसा ही नही होगा

और फिर तू

गलियों में,सड़कों पर

चिल्लाता फिरेगा,

कि

मैं इश्वर हुं,और मैं मौजूद हुं यहां

बिल्कुल उस बूढ़े की तरह