बुधवार, 30 सितंबर 2009

नेपाली की याद,उनके कविता के जरिए

निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए
तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो,
तुम कल्पना करो।

अब देश है स्वतंत्र, मेदिनी स्वतंत्र है
मधुमास है स्वतंत्र, चांदनी स्वतंत्र है
हर दीप है स्वतंत्र, रोशनी स्वतंत्र है
अब शक्ति की ज्वलंत दामिनी स्वतंत्र है
लेकर अनंत शक्तियाँ सद्य समृद्धि की-
तुम कामना करो, किशोर कामना करो,
तुम कल्पना करो।

तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है
मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है
घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार है
पर देश की स्वतंत्रता अमर पुकार है

टूटे कभी न तार यह अमर पुकार का-
तुम साधना करो, अनंत साधना करो,
तुम कल्पना करो।

हम थे अभी-अभी गुलाम, यह न भूलना
करना पड़ा हमें सलाम, यह न भूलना
रोते फिरे उमर तमाम, यह न भूलना
था फूट का मिला इनाम, वह न भूलना

बीती गुलामियाँ, न लौट आएँ फिर कभी
तुम भावना करो, स्वतंत्र भावना करो
तुम कल्पना करो।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

कोबाड़ नक्सली क्यों बना ?


नक्सलीयों के बड़े नेता कोबाड़ गांधी की दिल्ली से गिरप्तारी की खबर ने मन में कई सवाल पैदा किए । मुझे कोबाड़ गांधी से कोई हमदर्दी नहीं साथ ही कोबाड़ या फिर उसके साथियों ने जितने बेगूनाहों को मारा उसके लिए उसे सजा भी मिलनी चाहिए .....लेकिन गांधी से जुड़ी जानकारी ने मुझे चौंकाया....चौंकाने से ज्यादा उसने परेशान किया । गांधी ने दून स्कूल से अपनी शुरूआती पढ़ाई की थी । उसके बाद मुंबई के बेहतरीन कॉलेज और फिर विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी की । गांधी का रिश्ता मुंबई के एक सभ्रांत पारसी परिवार से था । और ये तमाम जानकारी जब मेरे चैनल पर चल रही थी । तब मेरे कई सहयोगी इस बात पर हंस रहे थे कि देखो एक पढ़ा लिखा आदमी पैसे कमाने के बजाये नक्सली बन गया । और मेरे सहयोगियों की यही हंसी मेरे मन में एक साथ कई सवाल पैदा कर रही थी । कि आखिर क्यों, विदेश से पढ़ कर वापस लौटे एक युवक के मन में जीवन के रंगीन और हसीन सपने पैदा होने के बजाये, जंगल जाने का विचार आया ।फॉरन रिटर्न युवक के मन में जहां मल्टीनेशनल कंपनी ,शानदार दप्तर, बढ़िया केबिन का ख्वाब आना चाहिए....वहीं इस युवा के मन में बंदुक उठाने का ख्याल आखिर क्यों आया होगा । क्यों इसने अपने वैवाहिक जीवन को शानदार ढंग से जीने की बजाये जंगल,बंदूक और पुलिस की गोली के भय के बीच जी । कोबाड़ की समाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि बताती है कि ना तो इसने समाज या पुलिस या फिर राज्य का कोई अत्याचार सहा है । जिसका बदला लेने के लिए इसने ये रास्ता चुना होगा । ऐसा भी नहीं है कि कोबाड़ कोई आपराधिक चरित्र का इंसान रहा है जिसके बूते ये कहा जा सके कि इसके नक्सली बनने की ट्रेनिंग इसे बचपन में ही मिल गयी थी । और शायद तब बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर कोबाड़ गांधी नक्सली क्यों बना ? जिसने स्कूल और कॉलेज में लोकतंत्र, अहिंसा और आजादी की पढ़ाई की । वही इंसान स्टेट के खिलाफ क्यों खड़ा हुआ ।क्यों जिस कोबाड़ गांधी को देश की तरक्की के लिए टैक्स पेयर बनना चाहिए था, वही कोबाड़ गांधी टैक्स पेयर के पैसों से लेवी वसूलने लगा । ये एक सवाल रहा जो मुझे बहुत देर तक मथता रहा । क्या नक्सली या फिर नक्सलवाद को महज एक लॉ एंड ऑर्डर की परेशानी बता कर खारिज किया जाता रहेगा । इसलिए ये जरूरी है कि इस पर भी बहस हो कि आखिर कोबाड़ नक्सली क्यों बना ?