एक आमंत्रण सा दिखता है तुममें,
एक मूक सहमति भी ।
पर ना जाने क्यों,
चेहरा भावहीन ।
आंखे,चेहरा,होंठ,चाल,हंसी,
सब तो जुड़े होतें है ।
पर तुममें ये
परस्पर विरोधी क्यों ।
नहीं,मैं जानता हुं,
इसके पीछे जान-बूझ कर
बुना हुआ कोई जाल नहीं ।
लेकिन अनजाने ही सही
भटकाव का कलंक
तुम्हारे खाते आएगा ।
और ये कोई गौरव,
तो नहीं, कि तुम इस पर,
इतराना चाहोगी ।
शायद कोई डर है
तुम्हारे मन में
लेकिन,रंगे चेहरे से बचने का
ये उचित समाधान तो नहीं ।
ये अबूझ पहेली,
परायों को उलझाने को तो ठीक
लेकिन इससे
अपनों को बंदिश क्यों ,
शायद लगता है,
नियोन बल्ब पसंद हैं तुम्हें ,
पर दिन के उजालों में भी,
यथार्थ से परहेज
ये ठीक तो नहीं.....