रुचिका गिरहोत्रा मामले में जब राठौर को 6 महीने की सजा सुनायी गयी थी तो राठौर अदालत से हंसते हुए बाहर निकला लेकिन अब राठौर की वो हंसी उसके चेहरे से गायब है ,पुलिस के घेरे में सिर झुकाये अदालत से जेल जा रहे राठौड़ के चेहरे पर कानून के डंडे का असर साफ दिख रहा था । उसके चेहरे से वो बेशर्म हंसी गायब थी, जो उसकी पहचान बन गई थी । पावर और पैसे का खेल बिगड़ा तो वो एक मामूली मुजरिम की तरह पुलिस की गिरफत में सिर झुकाये खड़ा था । लेकिन राठौड़ की वो पुरानी तस्वीर अब भी जेहन में है, जब राठौड़ को 6 महीने की सजा सुनायी गयी थी । उस समय उसके चेहरे पर कानून का भय नहीं बल्कि उससे खिलवाड़ करने वाली बेशर्मी थी, और यही बेशर्मी हंसी बन फूटी थी । राठौड़ की उस हंसी में पावर और पैसे का दंभ था...कानून से खिलवाड़ करने का गुरूर था ... और थी धूर्तता से भरी हुई चालाकी । राठौड़ की हंसी रसूखदार लोगों के अपराजित होने की ऐसी कहानी भी कह रहा थी जिसमें एक लड़की पर बुरी नजर डालने, छेड़छाड़ करने और आखिरकार उसे मरने के लिए मजबूर करने के बाद चेहरे पर पछतावा नहीं बल्कि विजेता के भाव थे ।लेकिन ये तब की कहानी थी....वक्त बदला...तारिख बदली कानून और अदालत का रूख बदला..तो चेहरे के भाव भी बदल गए....एक लड़की की अस्मत को खिलवाड़ बनाने वाल दंभी विजेता.... पराजित और हताश मुजरिम बन गया लेकिन ये सालों पहले होना चाहिए था । बेहतर ये होता कि सब कुछ रूचिका की आंखों के सामने होता, क्योंकि राठौड़ जैसे लोगों के चेहरे की ये बेशर्म हंसी आम आदमी को भरोसे को तोड़ती है और ऐसे ही शायद ऐसे ही टूटा होगा रूचिका का भरोसा और उसने आत्महत्या की होगी ।
जो कुछ हूं...उसे खुद चुना..लेकिन ना जाने क्यों कभी-कभी पसंद बोझिल लगने लगती है...कभी आत्ममुग्धता का भाव अच्छा लगता है...तो कभी नैराश्य में मस्ती ढूंढता हूं...कभी दौड़ना चाहता हुं..तो कभी अंधेरा कोना अच्छा लगता है...कभी आपबीती कहने को मन करता है...तो कभी जी करता है कि जगबीती सुनता रहूं