शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

मंदिर और मदिरालय

मंदिर और मदिरालय में है कौन बेहतर

ये सवाल एक छोटे बच्चे से पूछा ।

उससे,जो एक शराबखाने के बाहर,

बेचता है बर्फ हर शाम ।

कमर से बांधे रखता है प्लास्टिक का ग्लास

हाथों में एक मग और माचिस ।

पांच रूपये में रच देता है,जो

बार,खुले आसमां के नीचे ।

इसके बदले उसे मिलता है

चंद पैसे और शराब की खाली बोतलें

मुनाफे का सौदा है ये ।

ये जगह मुफिद है उसके लिये

धूल भरी गर्म शामों में भी ।

पर उसे बहुत मतलब नहीं

पास एक मंदिर से ।

उसे बस इतना मालूम है

कि,भगवान रहते हैं यहां ।

हजारों लोग आते हैं,

कुछ ना कुछ मांगने,

नई गाड़ी की पूजा कराने,

तो अच्छी नौकरी मांगने,

लेकिन इससे उसे क्या

रोटी तो नहीं मिल पाती यहां ।

प्रसाद भी लोग बड़ी दुकानों से खरीद लाते हैं

फूल बेचने के लायक पूंजी नहीं उसके पास ।

मंदिर से मिले प्रसाद के बाद भी,

भूख लगी रहती है उसे ।

लिहाजा मदिरालय ही,

बेहतर है उसके लिये ।

यहां वो शान से रहता है

क्योंकि उसे किसी से कुछ मांगना नहीं पड़ता ।