मंदिर और मदिरालय में है कौन बेहतर
ये सवाल एक छोटे बच्चे से पूछा ।
उससे,जो एक शराबखाने के बाहर,
बेचता है बर्फ हर शाम ।
कमर से बांधे रखता है प्लास्टिक का ग्लास
हाथों में एक मग और माचिस ।
पांच रूपये में रच देता है,जो
बार,खुले आसमां के नीचे ।
इसके बदले उसे मिलता है
चंद पैसे और शराब की खाली बोतलें
मुनाफे का सौदा है ये ।
ये जगह मुफिद है उसके लिये
धूल भरी गर्म शामों में भी ।
पर उसे बहुत मतलब नहीं
पास एक मंदिर से ।
उसे बस इतना मालूम है
कि,भगवान रहते हैं यहां ।
हजारों लोग आते हैं,
कुछ ना कुछ मांगने,
नई गाड़ी की पूजा कराने,
तो अच्छी नौकरी मांगने,
लेकिन इससे उसे क्या
रोटी तो नहीं मिल पाती यहां ।
प्रसाद भी लोग बड़ी दुकानों से खरीद लाते हैं
फूल बेचने के लायक पूंजी नहीं उसके पास ।
मंदिर से मिले प्रसाद के बाद भी,
भूख लगी रहती है उसे ।
लिहाजा मदिरालय ही,
बेहतर है उसके लिये ।
यहां वो शान से रहता है
क्योंकि उसे किसी से कुछ मांगना नहीं पड़ता ।